क्या वैज्ञानिक भी करते हैं टोटके... क्या आप जानते हैं कि जिस तरह से भारतीय संस्कृति में किसी कार्य को करने से पहले ईष्ट देवी देवताओं की आराधना की जाती है...उसी तरह से वैज्ञानिक भी अपने किसी भी मिशन से पहले किसी तरह की आराधना या फिर टोटके करते है...ताकि मिशन सफल हो सके...ऐसा भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ही नहीं, वल्कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, रूसी वैज्ञानिक समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक लॉन्चिंग से पहले अपने-अपने तरीके से टोटके करते हैं...जिसको लेकर मुझे एक पूरा आर्टिकल भी पढ़ने को मिला कितनी सच्चाई है यह मैं नहीं जानता पर पढ़ने पर रोचक भी लगा...आखिर जिस तरह की बातें जो मैंने पढ़ी उनको मैं शेयर कर रहा हूँ...आप भी पढ़कर चौंक जाएंगे...शुरुआत भी हाल ही में हुए मिशन चंद्रयान 2 से ही करता हूँ...भारतीय स्पेस सेन्टर ISRO ने बीते 07 सिंतबर को चंद्रयान 2 लांच किया था...लेकिन उससे पहले 15 जुलाई को भी लांच करने के प्रयास किये गए थे...पर लांच करने से पहले ही ड्राप कर दिया गया था...फिर 07 सिंतबर को ‘चंद्रयान-2' को लॉन्च किया गया... और मिशन लॉन्चिंग से पहले इसरो के प्रमुख के
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Science and tales of time traveler... बात ऐसे लोगों की...जिनके लिए शायद यही समझा जाता है कि वह भविष्य से भूत में किसी कारण बस आये...जिनको लेकर लोगों के अलग अलग मत भी रहे...कोई इसे फेक तो कोई यकीन करता...कोई इसे हैकिंग समझता...पर इस तरह की घटनाओं के पीछे कुछ न कुछ कारण भी होता है...इससे पहले हमने मिस्टीरियस वर्ल्ड नाम की बुक का एक चैप्टर जिसमें... एक अनोखे शक्स जॉन टाइटोर के बारे में बताया गया था...जो अपने आप को 2036 के समय का बताता था...और जो मैसेज के माध्यम से लोगों के बीच जुड़ा और कुछ घटनाएं भी बताई...जिनमें से 50 प्रतिशत सही और उतनी ही गलत साबित हुईं...पर अगर आधी बातें सहीं तो यह भी अचम्भे की बात...आखिर भविष्य की घटनाओं का सटीक अंदेशा कैसे किया जा सकता...आज भी हम ऐसी ही और अचंभित लेकिन सच्ची घटना... A Man in a plane... जिसमें 1954 में जापान के एयरपोर्ट पर एक प्लेन में एक व्यक्ति उतरता है... उसका पासपोर्ट चेक किया जाता है...लेकिन वहां जो कुछ भी हुआ वह बहुत ही अजीब था...प्लेन से उतरा हुआ साधारण सा एक इंसान जो कि बिज़नेस मैन की तरह दिख
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कुछ तो कहो आप... अब तो किसी से मन की बात कैसे कहें...मन की बात किसी से कहने में अब डर लगने लगा है...कोई अपना सा था जो शायद अब अपना कहाँ रहा...जिनसे अपनापन लगाया पर वो अपने क्यों नहीं लगते...बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ...कुछ कहना चाहता हूँ...पर लोगों के मुँह से अपनो के मेरे लिए कहे गए शब्द दिल से दूर से लगने लगे...अब तो मन भी कहने लगा कि अब दिल की बात कहें तो किससे कहें...अब तो मौन रहने में ही सुकून मिलता है...आज हवाएं दिशाएं सब वहीं हैं...पर मन की बात सुनने वाला दूसरों के बहाव में बह गया...एक अकेलापन सा अब खामोशी के अंधेरों में विलुप्त होने लगा है...पता नहीं अब दिल में करीब रहने वाले क्यों दूर होने लगे...अब तो मन की बात को मन में सजोए हुए एकला चला की राह पर बढ़ चला हूँ...आखिर मन की बात अब कहूँ तो किससे कहूँ...दिन की धूप में प्रकृति के बीच मन को उलझाने की कोशिश करता हूँ...पर रात के अंधेरे में बीते हुए पन्ने एक एक कर आंखों के सामने खुलने लगते हैं...मन को समझाने की लाख कोशिश करता हूँ...पर मन मानता ही कहाँ है...क्योंकि मन की बात कहन
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जिस तरह से बारिश के पानी में कागज़ की कश्ती भी अपने अंतिम सिरे के डूबने तक तैरने का प्रयास करती है...उसी तरह मेरा मन भी अंतिम क्षण तक मन की बात करने के लिए अपने मुहाने पर इंतज़ार में बैठा रहेगा...बीते कुछ दिनों में हम इतने दूर हो चुके हैं...कि ऐसा लगता है कि हम नदी के दो किनारे बन चुके हैं... ना तो हम कभी मिल सकते हैं सिर्फ लहरों के बीच गोते खाते हुए कागज़ की किसी कश्ती का इंतज़ार कर सकते हैं...कुछ दिनों पहले मेरे मन ने भी मन की बात बगैर किसी पैमाना तय किये हुए उससे कह दी...और मन की बात कर दी...उसका अपनापन देखकर...मन में उमंग की लहर थी...पर आने वाले समय की करवट बदलने की कहां आहट थी...कि बगैर किसी कारण के हम नदी के दो मुहानों में एक दूसरे के मुँह ताकते शब्दों की मीठी भाषा सुनने का इंतज़ार करते रहेगे...वह भी इसी इंतज़ार में दूसरे मुहाने पर आंखों की पलकों को झपकाए बिना एक शब्द का इंतज़ार में बैठे हुए हैं...अब तो दिनों के बाद महीनों तक बीते हो गए...पर न मेरे मन ने कुछ कहा और नाहि उसने...मैं भी उसके एक शब्द के इंतज़ार में बैठा हूँ जिससे गुमनानी की इन गुमटियों का फासला दूर हो
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इंतज़ार... रिश्तों की अहमियत को आज हम क्यों...भूलते जा रहे हैं...रिश्तों से दूरी बनाकर आज हम भी अकेले होते जा रहे हैं...और जिसका कारण है कि आज की नई जनरेशन लगातार डिप्रेशन का शिकार हो रही है...शायद ऐसा ही कुछ मेरे जीवन में भी हो रहा है...मैंने शायद शब्द का उपयोग इसलिए किया है...ऐसा हो भी सकता है या फिर कोई मन का बह्म हो सकता है...वाक़ई ज़िन्दगी के कुछ रिश्ते जिनसे कुछ अलग सा हि लगाव होता है...लेकिन जब वह रिश्ते बिखरने लगते हैं या फिर खामोशी के गुमनामी में खोने लगते हैं...तो इस परिस्थिति में अब आगे क्या?और जब रिश्तों के इस जोड़ में सामने वाला भी कुछ न कहे और आप भी न कुछ कह सको तो आपस के रिश्तों की दूरी आखिर कम होगी तो कैसे होगी...मैं सामने वाले से चाहता तो हूँ बहुत कुछ कुछ कहना पर किसी डर के कारण खामोश राह जाता हूँ...और इसी खामोशी के कारण आज हम कहीं दूर होते जा रहे हैं...to be continued...
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ज़िन्दगी के कुछ आत्मिक सच... बात रिश्तों की हो ही रही है...तो आज बात जीवन में कुछ ऐसे रिश्तों की करते हैं...जो पता ही नहीं चलता कि कब जीवन में हवा के झौंकों की तरह आकर कुछ अलग ही मन में या दिल में जगह बना जाते हैं...कुछ तो मन के इतने करीब होते हैं कि हमेशा खोने का डर बना रहता है...कई बार हालातों के कारण या फिर कुछ मन में उठे सवालों से रिश्तों में दूरियां होने लगती हैं...और ऐसे हालातों में हम सिर्फ रिश्तों के वापिस जुड़ने का इंतज़ार करते रहते हैं...और तब तक रिश्तों की दूरियां इतनी ज्यादा हो चुकी होती हैं कि न तो समय और नाहि कोई मौसम उन दूरियों को कम कर सकता है...और इन हालातों की वजह भी सिर्फ एक दूसरे की खामोशियाँ ही होती हैं...और हम सिर्फ रिश्तों के सुधरने का इंतज़ार में बैठे रहते हैं... लेकिन हम यह भूल जाते हैं जिस तरह से साल में कई बार मौसम बदलता रहता है...उसी तरह से रिश्तों में भी उतार चढ़ाव होता ही रहता है...हालात या परिस्थिति के कारण हम मुलाकातों के लिए समय नहीं निकाल पाते और मन में बैठे कुछ बहम के कारण दूरियां बढ़ने लगती हैं
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कुछ नया अनुभव... हाल ही में हुए चंद्रयान मिशन 2 ने सबको आकर्षित किया है...और अब तो युवा एक अच्छे कैरियर के रूप में भी इस क्षेत्र को देख रहे हैं...जिस तरह से चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग से लेकर लैंडिंग तक की हर घटनाओं ने सबको अपनी ओर आकर्षित किया...और मुझे तो कुछ इस तरह से फीवर चढ़ा कि जब भी थोड़ा बहुत समय मिलता है तो इंटरनेट पर चंद्रयान से जुड़ी हर वह नई अपडेट और उससे जुड़े वीडियोस को टिल एन्ड तक देखता हूँ...वहीं नासा के सहयोग के बाद तो और भी इंटरेस्ट बढ़ गया है...और हर समय लैंडर से संपर्क होने की उम्मीद जितनी इसरो के वैज्ञानकों को है उतनी ही उम्मीद और एक्ससिटमेंट मुझे भी...और शायद हर भारतीय को भी...लेकिन जिस तरह से लैंडर का विक्रम से संपर्क न होने और चंद्रमा में लूनर का एक दिन जो कि हमारे 14 दिन के बराबर होता है के आधे से अधिक समय तक निकलने के बाद उम्मीद भी कम होती जा रही है...लेकिन जिस तरह से नासा के सहयोग से एक्ससिटमेंट कुछ बढ़ा है और बचे हुए बाकि दिनों में जरूर कुछ न कुछ नया और अच्छा अपडेट सामने आएगा...जिसका हम सबको भरोसा