इंतज़ार...
रिश्तों की अहमियत को आज हम क्यों...भूलते जा रहे हैं...रिश्तों से दूरी बनाकर
आज हम भी अकेले होते जा रहे हैं...और जिसका कारण है कि आज की नई जनरेशन लगातार
डिप्रेशन का शिकार हो रही है...शायद ऐसा ही कुछ मेरे जीवन में भी हो रहा
है...मैंने शायद शब्द का उपयोग इसलिए किया है...ऐसा हो भी सकता है या फिर कोई
मन का बह्म हो सकता है...वाक़ई ज़िन्दगी के कुछ रिश्ते जिनसे कुछ अलग सा हि लगाव
होता है...लेकिन जब वह रिश्ते बिखरने लगते हैं या फिर खामोशी के गुमनामी में
खोने लगते हैं...तो इस परिस्थिति में अब आगे क्या?और जब रिश्तों के इस जोड़ में
सामने वाला भी कुछ न कहे और आप भी न कुछ कह सको तो आपस के रिश्तों की दूरी
आखिर कम होगी तो कैसे होगी...मैं सामने वाले से चाहता तो हूँ बहुत कुछ कुछ
कहना पर किसी डर के कारण खामोश राह जाता हूँ...और इसी खामोशी के कारण आज हम
कहीं दूर होते जा रहे हैं...to be continued...
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