जिस तरह से बारिश के पानी में कागज़ की कश्ती भी अपने अंतिम सिरे के डूबने तक तैरने का प्रयास करती है...उसी तरह मेरा  मन भी अंतिम क्षण तक मन की बात करने के लिए  अपने मुहाने पर इंतज़ार में बैठा रहेगा...बीते कुछ दिनों में हम इतने दूर हो चुके हैं...कि ऐसा लगता है कि हम नदी के दो किनारे बन चुके हैं... ना तो हम कभी मिल सकते हैं  सिर्फ लहरों के बीच गोते खाते हुए  कागज़ की किसी कश्ती का इंतज़ार कर सकते हैं...कुछ दिनों पहले मेरे मन ने भी मन की बात बगैर किसी पैमाना तय किये हुए उससे कह दी...और मन की बात कर दी...उसका अपनापन देखकर...मन में उमंग की लहर थी...पर आने वाले समय की करवट बदलने की कहां आहट थी...कि बगैर किसी कारण के हम नदी के दो मुहानों में एक दूसरे के मुँह ताकते शब्दों की मीठी भाषा सुनने का इंतज़ार करते रहेगे...वह भी इसी इंतज़ार में दूसरे मुहाने पर आंखों की पलकों को झपकाए बिना एक शब्द का इंतज़ार में बैठे हुए हैं...अब तो दिनों के बाद महीनों तक बीते हो गए...पर न मेरे मन ने कुछ कहा और नाहि उसने...मैं भी उसके एक शब्द के इंतज़ार में बैठा हूँ जिससे गुमनानी की इन गुमटियों का फासला दूर हो जाए ... पर अभी समय कागज़ की कश्ती की तरह लहरों के बहाव में उलझा हुआ है... भले ही लोग  जीवन में अपने सभी निर्णय दिमाग से लेने के लिए कहते हैं...पर कई बार दिल के आगे चलती कहां है किसी की...डरे हुए मन ने तो शायद अपना समझकर रिश्तों में उलझे बिना ही मन की बात कर दी...पर पता नहीं था कि जिससे मन की बात हुई वह नदी का एक किनारा बनकर आंखों के सामने झरोखे ही दिखाता रहेगा...अब तो सिर्फ एक इंतज़ार में बैठा हुआ मन नदी के दूसरे मुहाने से कागज़ की किसी कश्ती से उसके मन की बात के मीठे शब्द और अपनापन का इंतज़ार कर रहा है...या फिर सदियों तक नदी के मुहाने बनकर एक दूसरे के मन की बात के लिए समय की करवट बदलने तक इंतज़ार करेंगे । 

           😑😑 मन की बात🙄😏😣

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