कुछ तो कहो आप...

अब तो किसी से मन की बात कैसे कहें...मन की बात किसी से कहने में अब डर लगने
लगा है...कोई अपना सा था जो शायद अब अपना कहाँ रहा...जिनसे अपनापन लगाया पर वो
अपने क्यों नहीं लगते...बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ...कुछ कहना चाहता हूँ...पर
लोगों के मुँह से अपनो के मेरे लिए कहे गए शब्द दिल से दूर से लगने लगे...अब
तो मन भी कहने लगा कि अब दिल की बात कहें तो किससे कहें...अब तो मौन रहने में
ही सुकून मिलता है...आज हवाएं दिशाएं सब वहीं हैं...पर मन की बात सुनने वाला
दूसरों के बहाव में बह गया...एक अकेलापन सा अब खामोशी के अंधेरों में विलुप्त
होने लगा है...पता नहीं अब दिल में करीब रहने वाले क्यों दूर होने लगे...अब तो
मन की बात को मन में सजोए हुए   
 एकला चला की राह पर बढ़ चला हूँ...आखिर मन की बात अब कहूँ तो किससे कहूँ...दिन
की धूप में प्रकृति के बीच मन को उलझाने की कोशिश करता हूँ...पर रात के अंधेरे
में बीते हुए पन्ने एक एक कर आंखों के सामने खुलने लगते हैं...मन को समझाने की
लाख कोशिश करता हूँ...पर मन मानता ही कहाँ है...क्योंकि मन  की बात कहने के
लिए अब बचा ही क्या है...आज मन की बात सुनने वालों के लिए भले ही कुछ खास
हो...पर मन उदास है...अब तो मौन रहने में ही सब कुछ खास है...to be
continued...

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